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Tuesday 16 February 2021

वसंत पंचमी पर मां वाग्देवी सरस्वती जन्मोत्सव भोजशाला में उत्साह से उत्सव मनाया गया

 वसंत पंचमी पर मां वाग्देवी सरस्वती जन्मोत्सव भोजशाला में उत्साह से उत्सव मनाया गया

परंपरा अनुसार मां वाग्देवी के तैल चित्र के साथ शोभायात्रा निकाली , लंदन से मूर्ति लाने का संकल्प भी लिया

सरस्वती शक्तिपीठ धार के अलावा कहीं नहीं - महामंडलेश्वर संत नरसिंह दास महाराज 

संजय शर्मा  संपादक 

हैलो धार पत्रिका 

           धार - वसंत पंचमी पर मां वाग्देवी सरस्वती जन्मोत्सव भोजशाला में उत्साह से उत्सव मनाया गया। सुबह से की हवन, पूजा, आराधना का सिलसिला चलता रहा, जो कि देर शाम तक जारी रहा। हजारों भक्तों ने आकर यहां मां सरस्वती की आराधना की। परंपरा अनुसार मां वाग्देवी के तैल चित्र के साथ शोभायात्रा निकाली गई। लंदन से मां की मूर्ति लाने का संकल्प भी लिया गया।


          महाराजा भोज स्मृति वसंतोत्सव समिति द्वारा पहले से ही उत्सव को लेकर तैयारियां की जा रही थीं। मंगलवार को जैसे ही सूर्य की पहली किरण निकली, भक्तों का भोजशाला में आना शुरू हो गया था। यह सिलसिला सूर्यास्त तक जारी रहा। शाम को आरती के पश्चात भोजशाला को बंद किया गया। बता दें कि साल में एक बार ही वसंत पंचमी पर मां वाग्देवी के तैल चित्र को अंदर ले जाने की अनुमति रहती है। इस बार खास बात यह रही कि वसंत पंचमी मंगलवार आने से हिंदुओं में काफी उत्साह देखा गया। प्रति मंगलवार होने वाला सत्याग्रह पारंपरिक रूप से सुबह 8ः55 पर किया गया। इसके बाद सुबह 11 बजे मां वाग्देवी के तैल चित्र की शोभायात्रा शुरू हुई। इसमें हजारों की संख्या में हिंदुओं ने भाग लिया।


राजा भोज के जयकारों से गूंजा शहर

        शोभायात्रा का पूरे शहर में जगह-जगह स्वागत किया गया। इस मौके पर युवाओं में काफी उत्साह देखा गया। केशरिया पताका को हाथ में लिए उत्साह से युवाओं ने जोश में भगवान राम व राजा भोज के जयकारों से पूरे शहर को गूंजा दिया। शोभायात्रा में महंत डॉ नृसिंह दास को एक रथ में विराजित किया गया था।


सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए पुलिस बल तैनात...

             सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए सुबह से ही शहर के प्रमुख चौराहे पर पुलिस फोर्स तैनात किया गया था। इसी के साथ शोभायात्रा में प्रशासन के आला अधिकारी साथ चल रहे थे। भोजशाला के बाहर भी काफी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया था। जैसे ही शोभायात्रा भोजशाला के बाहर पहुंची, युवाओं का उत्साह चरम पर चढ़ गया था। उसके बाद तैल चित्र को भोजशाला में प्रवेश कराया गया। 


            इस समय भी राजा भोज के जयकारों...सरस्वती माता की जय से पूरा भोजशाला परिसर गूंज उठा। फिर तैल चित्र को गर्भगृह में स्थापित कर महाआरती की गई। इस मौके पर कृष्णा लाल नागर, गोपाल शर्मा, हेमंत दोराया, ओम प्रजापत, श्याम मालवा, हेमंत मालवीय, सुमित चौधरी, बंटी राठौर, निलेश परमार, जगदीश राठौड़, शुभम पटेल, विक्रम लववंशी, बडू भाबर, मोहन देवड़ा, पप्पू डामोर, निखिल जोशी, शुभम राठौड़, बलराम प्रजापत, सुधीर वाजपेई, संजय शर्मा, दीपक गौड़ सहित समस्त समिति के कार्यकर्ता मुख्य रूप से उपस्थित थे।


सरस्वती शक्तिपीठ धार के अलावा कहीं नहीं -  महामंडलेश्वर संत नरसिंह दास महाराज 

                 शोभायात्रा के भोजशाला पहुंचने के बाद धर्मसभा का आयोजन किया गया। इसमें मंच पर  महामंडलेश्वर संत नृसिंह दास महाराज , अयोध्या से पधारे महंत मदन मोहन शरण, डॉ . ईश्वर सोलंकी उपस्थित थे। नृसिंह दास ने कहा कि पहले तो हम यह जानें...ये धारानगरी भोजशाला है क्या। हम भोजशाला की बात करते हैं, उसके बड़े आंदोलन की बात करते हैं, पर ये कितना संपन्ना इतिहास इस धारा नगरी का रहा है। आज मुझे यह देखकर दुख हुआ कि हमारे धार नगर के लोग अपनी धारानगरी के इतिहास और शास्त्रों में इसके स्थान को जानते ही नहीं। 


            मां वीणावादिनी की भोजशाला कुछ लोगों में ही सिमटकर रह गई। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस संपूर्ण देश में सरस्वती शक्तिपीठ को देखें तो धार के अलावा और कहीं नहीं है। हम इतने बड़े तीर्थ को समाप्त कर अपने ही महत्व को खत्म करने में लगे हैं। राजा भोज के काल में संपूर्ण राज्य में तीन बड़े संस्कृत विश्वविद्यालय हुआ करते थे- उज्जैन, मांडू व एक धारा नगरी, जिसको हम भोजशाला के रूप में जानते हैं। भोजशाला में सबसे उत्तम 1500 आचार्य अगल-अलग विषयों पर यहां अपने विद्यार्थियों को ज्ञान देते थे। न्यूक्लियर साइंस जैसे आज के आधुनिक विषय उस समय हमारी भोजशाला में पढ़ाए जाते थे।


                      उन्होंने कहा हिंदू समाज की आत्मीय शक्ति, धर्म के प्रति पूर्ण समर्पण और धैर्य ने हमें एक ऐसी 500 साल की लड़ाई पर विजयी दिलाई और हमारे आज के वर्तमान सौभाग्य को बढ़ाया कि हम श्रीराम की नगरी अयोध्या के उस तीर्थ क्षेत्र को देख रहे हैं तो क्या एक बार इस धारा नगरी अपनी जन्मभूमि, अपनी कर्मभूमि को एक शक्तिपीठ के रूप में मानकर विश्व के एक सबसे बड़े शिक्षा के केंद्र के रूप में मानकर उसके प्रति पूर्ण समर्पण रखकर मन में ठान लें तो क्या आपको लगता है, वाग्देवी की मूर्ति को यहां लाने में कष्ट होगा। मैं उत्सव समिति के सभी पदाधिकारी से निवेदन करता हूं एक ऐसा अभियान चलाएं कि धार नगर के घर-घर में मां वाग्देवी का छायाचित्र हो। साथ ही उन्होंने भोजशाला को तीर्थ के रूप में जागृत, उन्नात करने के प्रयास में आगे बढ़ने की सभी को प्रतिज्ञा दिलाई।     


     

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