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Sunday 15 November 2020

शहीद बिरसा मुण्डा जयंती पर जिला पंचायत अध्यक्ष की अध्यक्षता में शहीद कार्यक्रम आयोजित

 शहीद बिरसा मुण्डा जयंती पर जिला पंचायत अध्यक्ष की अध्यक्षता में शहीद  कार्यक्रम आयोजित 

संजय शर्मा संपादक 
हैलो धार पत्रिका 

              धार - जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमतीमालती मोहन पटेल  की अध्यक्षता में शहीद बिरसा मुण्डा जयंती का कार्यक्रम आज जिला पंचायत सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा जन नायक बिरसा मुण्डा के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती पटेल ने कहा कि वे भी जनजातिय समाज से है। आदिवासी जननायक बिरसा मुण्डा का स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बडा योगदान रहा है। उनसे हमे ये सीख मिलती है कि कुछ करने के लिए उम्र मायने नहीं रखती, हौसला होना चाहिए। वह एक प्रकृति प्रेमी थे। आजादी दिलाने में उन्होने बहुत ही अहम भूमिका निभाई है।


                 कार्यक्रम को संबोधित करते हुएकलेक्टर  आलोक कुमार सिंह ने कहा कि आज हम इतने अच्छे माहौल में रह रहे है। यह आदिवासी जनजातिय लोगो के कारण ही है। जिन्होने जल, जंगल और जमीन को सुरक्षित रखा है। बिरसा मुण्डा ऐसे नायक है जिनके कारण आज हम खुली हवा ले रहे है। उन्होने जल, जंगल जमीन एवं स्वतंत्रता के लिए अनेको कार्य किए है। आदिवासी जननायको ने आजादी के लिए बहुत सघर्ष किए है।


                  कार्यक्रम में बताया गया कि सिंहभूम प्राचीन बिहार का वह भूभाग है जो वर्तमान में झारखंड के नाम से जाना जाता है, यहां की प्रमुख नगरी रांची 19 वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में बिरसा विद्रोह की साक्षी रही है। बिरसा उस महानायक का नाम है जिसने मुंडा जनजाति के विद्रोह का नेतृत्व किया था। एक इष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुण्डा पूरे मुण्डा समाज के साथ-साथ देश के आदिवासी समाज की अस्मिता बन गये। बिरसा ने पूरे जंगलों की प्राणवायु को संघर्ष की ऊर्जा से भर, सबके जीवन का आघार बना दिया था । 15 नवम्बर, 1875 को जन्मे बिरसा मुण्डा के पिता सुघना मुण्डा तथा माता करनी मुण्डा खेतिहर मजदूर थे। बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। कुशाग्र बुद्धि के बिरसा का आरंभिक जीवन जंगलों में व्यतीत हुआ। उनकी योग्यता देख उनके शिक्षक ने बिरसा को जर्मन मिशनरी स्कूल में भर्ती करवा दिया। इसकी कीमत उन्हें धर्म परिवर्तन कर चुकानी पड़ी। यहां से मोहभंग होने के बाद बिरसा पढ़ाई छोड़ चाईबासा आ गये। देश में स्वाधीनता की आवाज तेज होने लगी थी । बिरसा पुनः अपने आदिवासी धार्मिक परंपरा में वापिस लौट आये। अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा पहले जंगलों का स्वामित्व आदिवासियों से छीना, फिर बड़े जमीदारों ने वनवासियों की जमीन हड़पना शुरु की। इस अन्याय के विरुद्ध बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिशों, क्रिश्चियन मिश्नरियों, भूपतियों एवं महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा आदिवासियों के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया। 3 मार्च, 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 9 जून, 1900 को बिरसा वीरगति को प्राप्त हो गये। 


              इस अवसर पर पुलिस अधीक्षक  आदित्य प्रताप सिंह, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत संतोष वर्मा, सहायक आयुक्त जनजातिय कार्य विभाग श्री ब्रजेश पांडे, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व सत्यनारायण दर्रो, उप संचालक कृषि आर एल जामरे, छात्रवास अधीक्षक सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।

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