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Wednesday, 13 April 2022

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति‘‘ पर मंडी प्रांगण में एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

 शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति‘‘ पर मंडी प्रांगण में एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न 

मुख्यमंत्री की घोषणा मप्र में बनेगा प्राकृतिक कृषि बोर्ड

गुजरात के राज्यपाल देवव्रत बोले- रासायनिक और जैविक दोनों खेती पर्यावरण के लिए भी अच्छी नहीं है, मैं 90 एकड़ में करता हूं नेचुरल फार्मिंग

संजय शर्मा संपादक

हैलो धार पत्रिका/ हैलो धार न्यूज़ पोर्टल

      भोपाल / धार। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति पर बुधवार को कुशाभाऊ ठाकरे सभागार (मिंटो हाल) में राज्य स्तरीय कार्यशाला हुई। इस दौरान सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जीरो बजट की प्राकृतिक खेती के प्रोत्सहान के लिए मध्यप्रदेश में प्राकृतिक कृषि बोर्ड बनाया जाएगा। 


     उन्होंने 5 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती शुरू करने की बात भी कही। साथ ही सीएम शिवराज ने प्रदेशभर के किसानों से अपील की कि वे भी इसके लिए आगे आएं। इस मौके पर मप्र के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ व गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मप्र सरकार के कृषि मंत्री कमल पटेल सहित बड़ी संख्या में किसान मौजूद रहे। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर वीडिया कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े।


     धार में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पद्धति पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन जिला मुख्यालय में मण्डी प्रांगण में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती के चित्र के समक्ष माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इस अवसर पर विधायक नीना वर्मा, 


     भाजपा जिलाध्यक्ष एवं पूर्व सीसीबी अध्यक्ष राजीव यादव ,पूर्व कैबिनेट मंत्री रंजना बघेल,किसान मोर्चा प्रदेश महामंत्री दिलीप पटोदिया ,भाजपा वरिष्ठ नेता अनंत अग्रवाल ,पूर्व सांसद सावित्री ठाकुर ,जिला पंचायत उपाध्यक्ष कल्याण सिंह पटेल,भाजपा जिला मीडिया प्रभारी संजय शर्मा,पिछड़ा वर्ग मोर्चा जिला महामंत्री संजय मकवाना, किसान मोर्चा पूर्व जिला अध्यक्ष जगदीश जाट,डॉ अमृत पाटीदार ,रतन पाटीदार  सहित अन्य जनप्रतिनिधि व कृषणगण उपस्थित थे। उक्त कार्यक्रम में प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम को एलईडी के माध्यम से देखा व सुना गया।


     भोपाल से वीडिया कांफ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बताया कि मैंने रासायनिक खेती भी की है। जैविन खेती भी की है। लेकिन दोनों खेतियां पर्यावरण के लिए भी अच्छी नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए 24 प्रतिशत रासायनिक खेती जिम्मेदार है। जैविक भी उसमें सहयोग करती है। जैविक में कीटनाशक वाला जहर नहीं है। इसका विकल्प प्राकृतिक खेती है। हमारे पास 200 लोगों की टीम है। यह लोग प्रदेश में ट्रेनर बनेंगे। यह प्रदेश में बहुत बड़ा काम कराने वाले हैं।


           उन्होंने कहा कि एक समय था जब रासायनिक खेती की मांग थी। लेकिन यूएनओ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार धरती में यूं ही यूरिया, डीएपी डालते रहे तो आने वाले 50 साल बाद धरती कुछ भी पैदा नहीं करेगी। धरती घर के फर्स की तरह हो जाएगी। हरित क्रांति उत्तराखंड की जिस पंत नगर यूनिवर्सिटी से शुरु हुई, जो पहले यूपी में थी। इस दौरान इस यूनिवर्सिटी सहित पूरे देश की भूमि का आर्गनिक कार्बन ढ़ाई प्रतिशत से ऊपर था। अब इस यूनिवर्सिटी का आर्गनिक कार्बन 0.6 प्रतिशत है। जिस जमीन का आर्गनिक कार्बन 0.3456 प्रतिशत है वो लगभग बंजर हो चुकी है। 


       भारत में की सारी धरती का आर्गनिक कार्बन देखें तो यह 0.5 प्रतिशत पर आ चुका है। यानी अब इसमें और ज्यादा डीएपी, यूरिया, कीटनाशक डालना पड़ेगा। धरती की उपजाऊ क्षमता कम होती चली गई। आने वाले समय में लागत बढ़ती जाएगी। साथ ही इससे उत्पादित होने वाली फसल से बीमारी भी बढेगी। इसका हल प्राकृतिक खेती है।

जैविक खेती के घाटे ने प्राकृतिक खेती से परिचय कराया-

   जैविक खेती के घाटे के कारण मैं भी असमंजस में था। रासायनिक खेती की ओर वापस लौटने की इच्छा थी। लेकिन प्राकृतिक खेती का प्रचार करने वाले पद्मश्री सुभाष पालेकर की जानकारी मिली। पांच दिन मैंने इसकी ट्रेनिंग ली। पालेकर विधि से प्राकृतिक खेती शुरू की। पूरी विधि से करने से मुझे लगभग उतना ही उत्पादन हो गया जितना रसायनिक खेती से मिलता था। आधी-अधूरी विधि से कुछ प्राप्त नहीं होगा। नियम तोड़कर करोगे तो भी कुछ नहीं होगा। यह उत्पादन लगातार बढ़ा।


प्राकृतिक खेती क्यों अपनाएं -

    1 लाख 40 हजार करोड़ रुपए भारत सरकार प्रतिवर्ष खर्च कर विदेश से डीएपी, यूरिया खरीदी थी। इसे किसान खरीदकर खेतों में डालते हैं। जो बीमारी का कारण बनती है। लेकिन प्राकृतिक खेती में ऐसा नहीं है।पहले साल 5 एकड़ में, दूसरे साल में 10 एकड़ में सफल होने पर सीधे 90 एकड़ में प्राकृतिक खेती कर रहा हूं। इसके लिए सिर्फ देशी नस्ल की भारतीय गाय होनी चाहिए। इसके लिए खाद नहीं चाहिए। इसके लिए कल्चर बनाया है। इसका कल्चर बनाया है। इसके लिए पहली जरूरत है देशी गाय। इसके गौ-मूत्र और गोबर से घनजीवामृत बनाते हैं और जीवामृत बनाते हैं। इसकी एक पूरी विधि है। रसायन मुक्त शुद्ध अनाज का उत्पादन मिलेगा। प्राकृतिक खेती से धरती बंजर होने से बचेगी।


 

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