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Monday 24 August 2020

कलेक्टर आलोक कुमार सिंह अधिकारयों के साथ धार जिले की धरोहर कह जाने वाले किले तथा पंवार वंश की छत्रियों का निरीक्षण करने पहुँचे

 कलेक्टर आलोक कुमार  सिंह अधिकारयों के साथ धार जिले की धरोहर कह जाने वाले किले तथा पंवार वंश की छत्रियों का निरीक्षण करने पहुँचे

ऐतिहासिक किले में पहुॅच मार्ग व्यवस्थित कर आकर्षक बगीचा एवं न्यू पाइंट विकसित किए जाएंगे 

संजय शर्मा संपादक 

हैलो धार पत्रिका 

         

              धार - कलेक्टर  आलोक कुमार सिंह ने धार जिले की धरोहर कह जाने वाले किले तथा पंवार वंश की छत्रियों का निरीक्षण किया। धार का किला पुरातात्विक ऐतिहासिक एवं सौंदर्य का अप्रतिम उदाहरण है, किंतु सुविधाओं एवं व्यवस्थाओं के अभाव में अपेक्षा का शिकार हो रहा है। 

            इस प्रकार समृद्ध विरासत को समेटे हुए पंवार वंश की छत्रियों तक भी पर्यटक नहीं पहुॅचते है। श्री सिंह ने इन उपेक्षित स्मारकों की सुध लेते हुए धार किला एवं छत्रियों के सौंदर्यीकरण का बीड़ा उठाया है। जिसको ध्यान रखते हुए वे आज अधिकारियों के साथ यहां पहुँचे।

      श्री सिंह ने बताया कि धार के ऐतिहासिक किले में पहुॅच मार्ग व्यवस्थित कर आकर्षक बगीचा एवं न्यू पाइंट विकसित किए जाएंगे। साथ ही किले में पाथ वे, गार्डन तथा खान-पान के स्टाल भी बनाए जायेगे। इससे धार शहर के निवासियों एवं पर्यटकों को एक सुविधायुक्त पर्यटक स्थल मिल सकेगा। इसी प्रकार छत्रियों के सौंदर्यीकरण एवं अन्य सुविधाओं हेतु भी विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जाएगी। 

                   पंवार वंश की छत्रियों की गाथाएं प्रचलित है जिसमे इन निर्मित छत्रियों के बारे में बताया गया है। "महाराज श्री के रामचंद्रराव की द्वितीय पवांर की छत्री" यह छत्री लगभग 25×30 वर्ग फीट उचें चबूतरे पर निर्मित है, जिस पर पहुॅचने  हेतु सापान है। छत्री अंलकृत एंव पुर्वभिमुखी है। इसमें 4 अलंकृत स्तम्भों वाला मंड़प है, ततपश्चात गर्भग्रह है। अंलकृत द्वार के ललाट बिम्ब पर श्री गणेश उत्कीण है। गर्भग्रह में जलधारी शिविलिंग व पाॅच चरण चिन्ह प्रस्तर पर निर्मित  है।

              इसके पृष्ट में अंलकृत सिंहासन पर महाराज श्री रामचंद्रराव पवांर (द्वितीय) की संगमरमर प्रतिमा विराजमान है। गर्भग्रह तल विन्यास एवं मंदिर विन्यास की दृष्टि से अष्ठकोणीण है जिसमें लघु आले बने है। मंडप में अंलकृत पीठिका  पर बंदी गर्भग्रह ओर मुखाकृति किए बैठे दिखलाए गये। छत्री 18 वी 19 सदी ई. की है।

 

                इसके अलावा "आनंदराव पंवार तृतीय एवं उनकी पत्नी की छत्री" उचें पस्तर चबूतरे पर दो साधारन छत्रीया निर्मित है जिसमें एक महाराज श्री के आनंद राव पवांर  तथा दूरसी उनकी धर्म पत्नी की है। इसमें प्रथम पत्नी का नाम राधाबाई तथा द्वितीय पत्नी का नाम सत्यभामा बाई है। प्रमाण ने होने के कारण यह कहना मुश्किल है, कि समीप की छत्री किस रानी है। पुजारियों का कहना है कि यह छत्री राधा बाई की है। दोनो छत्रियों चतुष्ट कोणीय है, जिनका उपरी भाग गोल गुम्मदाकार है।

             दोनो के प्रवेश द्वार पूर्वाभीमुखी है। गर्भग्रह में दायी और महाराज साहब की तथा बयी ओर की छत्री मे उनकी पत्नी की प्रतिमा विजरामान है। इन दोनो छत्री के प्रवेश द्वार अंलकृत लडडी के है। दोनो द्वार के ललाट बिम्ब पर गणेश प्रतिका अंकित है। दोनो छत्रीयां क्षतिग्रस्त है 19-20 सदी ई. की है। इनके अलावा भी इन छत्रियों की कई गथाएं प्रचलित है।

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