लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल पास, राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बनेगा
राज्यसभा में वोटिंग के दौरान बिल के पक्ष में 99 और विरोध में 84 वोट पड़े
इस बार यह बिल 25 जुलाई को लोकसभा से पास हुआ और 5 दिन बाद ही राज्यसभा में वोटिंग हुई
बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने का प्रस्ताव भी 84 के मुकाबले 100 वोटों से गिर गया
संजय शर्मा संपादक
हैलो धार पत्रिका
नई दिल्ली - लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल मंगलवार को पास हो गया। वोटिंग के दौरान बिल के पक्ष में 99 और विरोध में 84 वोट पड़े। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर-कानूनी करार दिया था। इसके बाद 2 साल में यह बिल 2 बार लोकसभा से पारित होने के बाद राज्यसभा में अटक गया। आम चुनाव के बाद तीसरी बार यह विधेयक 25 जुलाई को लोकसभा से पारित हुआ। 5 दिन बाद ही यह राज्यसभा से भी पास हो गया। अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। तीन तलाक देने के दोषी पुरुष को 3 साल की सजा सुनाई जाएगी। पीड़ित महिलाएं अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारे-भत्ते की मांग कर सकेंगी।
बिल में 3 साल की सजा के प्रावधान का कांग्रेस ने विरोध किया। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि 3 साल की सजा का प्रावधान ठीक उसी तरह है, जैसे किसी को अपमानित करने या धमकाने के जुर्म में जेल भेज दिया जाए। इसलिए हम इस बिल को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजना चाहते थे।
कानून मंत्री ने कहा- सजा के प्रावधान में कुछ गलत नहीं
विपक्ष की इस आपत्ति पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि दहेज विरोधी कानून और बहुविवाह रोकने से जुड़े कानून में भी दोषी हिंदू पुरुष को जेल भेजने का प्रावधान है, लिहाजा तीन तलाक के दोषी पुरुष को सजा के प्रावधान में कुछ गलत नहीं है। उन्होंने कहा- यह (तीन तलाक बिल) लैंगिक समानता और महिलाओं के सम्मान का मामला है। तीन तलाक कहकर बेटियों को छोड़ दिया जाता है, इसे सही नहीं कहा जा सकता।’’ यह विधेयक 25 जुलाई को लोकसभा में पहले ही पास हो चुका है। लोकसभा में बिल के पक्ष में 303 और विरोध में 82 मत पड़े थे। तब कांग्रेस, तृणमूल, सपा और डीएमके समेत अन्य पार्टियों ने बिल का विरोध करते हुए वोटिंग से पहले सदन से वॉकआउट किया था।
2017 में आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था।
सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पारित कराया लेकिन राज्यसभा में यह बिल अटक गया था।
विपक्ष ने मांग की थी कि तीन तलाक के आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान भी हो।
2018 में विधेयक में संशोधन किए गए, लेकिन यह फिर राज्यसभा में अटक गया।
इसके बाद सरकार सितंबर 2018 में अध्यादेश लेकर आई। इसमें विपक्ष की मांग काे ध्यान में रखते हुए जमानत का प्रावधान जोड़ा गया। अध्यादेश में कहा गया कि तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल होगी।
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