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Monday 18 March 2019

क्षत्रिय लोधा समाज ने वीरांगना रानी अवंतीबाई के शहीद पर युवा वर्ग ने बडी संख्या मे रक्तदान किया

क्षत्रिय लोधा समाज ने वीरांगना रानी अवंतीबाई के शहीद पर  युवा वर्ग ने बडी संख्या मे रक्तदान किया

अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था वीरांगना अवंतीबाई  ने

संजय शर्मा 
हैलो -धार पत्रिका 
             धार - भारत में पुरुषों के साथ आर्य ललनाओं ने भी देश, राज्य और धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राणों की बाजी लगाई है। गोंडवाने की रानी दुर्गावती और झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई के चरण चिन्हों का अनुकरण करते हुए रामगढ़ (जनपद मंडला- मध्य प्रदेश) की रानी वीरांगना महारानी अवंतीबाई  ने सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो से खुलकर लोहा लिया था और अंत में भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी थी। वीरांगना महारानी अवंतीबाई  का जन्म 16 अगस्त 1831 को मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह के यहां हुआ था। 20 मार्च 1858 को इस वीरांगना ने रानी दुर्गावती का अनुकरण करते हुए युद्ध लड़ते हुए अपने आप को चारों तरफ से घिरता देख स्वयं तलवार भोंक कर देश के लिए बलिदान दे दिया।
                  उन्होंने अपने सीने में तलवार भोंकते वक्त कहा कि ‘‘हमारी दुर्गावती ने जीते जी वैरी के हाथ से अंग न छुए जाने का प्रण लिया था। इसे न भूलना।' उनकी यह बात भी भविष्य के लिए अनुकरणीय बन गयी। वीरांगना अवंतीबाई का अनुकरण करते हुए उनकी दासी ने भी तलवार भोंक कर अपना बलिदान दे दिया और भारत के इतिहास में इस वीरांगना अवंतीबाई ने सुनहरे अक्षरों में अपना नाम लिख दिया। 
               आज उसी वीरांगना की शहादत की उपेक्षा देखकर दुःख होता है। कहा जाता है कि वीरांगना अवंतीबाई  1857 के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं में अत्यधिक योग्य थीं। वीरांगना अवंतीबाई का योगदान भी उतना ही है, जितना 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का था। लेकिन हमारे देश की सरकारों ने चाहे केंद्र की जितनी सरकारे रही हैं या राज्यों की जितनी सरकारें रही हैं उनके द्वारा हमेशा से वीरांगना अवंतीबाई  की उपेक्षा होती रही है। वीरांगना अवंतीबाई जितने सम्मान की हकदार थीं परंतु उनको उतना सम्मान नहीं मिला। इससे ऐसा लगता है कि देश के इतिहासकारों और नेताओं की पिछड़ा विरोधी मानसिकता झलकती है। 
 वीरांगना अवंतीबाई  ने वीरांगना झाँसी की रानी की तरह ही अपने पति विक्रमादित्य के अस्वस्थ होने पर ऐसी दशा में राज्य कार्य संभाल कर अपनी सुयोग्यता का परिचय दिया और अंग्रेजों के नाक मे चने चबा दिये थे  । सन 1857 में जब देश में स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तो क्रान्तिकारियों का सन्देश रामगढ़ भी पहुंचा। रानी तो अंग्रेजों के अत्याचारो से आग बन बैठी थीं, क्योंकि उनका राज्य भी झाँसी की तरह कोर्ट कर लिया गया था और अंग्रेज रेजिमेंट उनके समस्त कार्यों पर निगाह रखे हुई थी। रानी ने अपनी ओर से क्रान्ति का सन्देश देने के लिए अपने आसपास के सभी राजाओं और प्रमुख जमींदारों को चिट्ठी के साथ कांच की चूड़ियां भिजवाईं उस चिट्ठी में लिखा था- ‘‘देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो या चूड़ी पहनकर घर में बैठो तुम्हें धर्म ईमान की सौगंध जो इस कागज का सही पता बैरी को दो।' 
            सभी देश भक्त राजाओं और जमींदारों ने रानी के साहस और शौर्य की बड़ी सराहना की और उनकी योजनानुसार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। जगह-जगह गुप्त सभाएं कर देश में सर्वत्र क्रान्ति की ज्वाला फैला दी। रानी ने अपने राज्य से कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधिकारियों को भगा दिया और राज्य एवं क्रान्ति की बागडोर अपने हाथों में ले ली। 
               आज ऐसी आर्य वीरांगना का बलिदान और जन्मदिवस उनकी जाति (लोधी ,लोधा ) के ही कार्यक्रम बनकर रह गए हैं। वीरांगना अवंतीबाई किसी जाति विशेष के उत्थान के नहीं लड़ी थीं बल्कि वो तो अंग्रेजों से अपने देश की स्वतंत्रता और हक के लिए लड़ी थीं। जब रानी वीरांगना अवंतीबाई अपनी मृत्युशैया पर थीं तो इस वीरांगना ने अंग्रेज अफसर को अपना बयान देते हुए कहा कि ‘‘ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मैंने ही विद्रोह के लिए उकसाया, भड़काया था उनकी प्रजा बिलकुल निर्दोष है।' ऐसा कर वीरांगना अवंतीबाई  ने हजारों लोगों को फांसी और अंग्रेजों के अमानवीय व्यवहार से बचा लिया। मरते-मरते ऐसा कर वीरांगना अवंतीबाई ने अपनी वीरता की एक और मिसाल पेश की। 
              निःसंदेह वीरांगना अवंतीबाई का व्यक्तिगत जीवन जितना पवित्र, संघर्षशील तथा निष्कलंक था, उनकी मृत्यु (बलिदान) भी उतनी ही वीरोचित थी। धन्य है वह वीरांगना जिसने एक अद्वितीय उदहारण प्रस्तुत कर 1857 के भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में 20 मार्च 1858 को अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसी वीरांगना का देश की सभी नारियों और पुरुषों को अनुकरण करना चाहिए और उनसे सीख लेकर नारियों को विपरीत परिस्थितियों में जज्बे के साथ खड़ा रहना चाहिए और जरूरत पड़े तो अपनी आत्मरक्षा अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीरांगना का रूप भी धारण करना चाहिए। 20 मार्च 2019 को ऐसी आर्य वीरांगना के 151वें बलिदान दिवस पर उनको शत्-शत् नमन् और श्रद्धांजलि।
  ऐसी महान वीरांगना के बलिदान दिवस पर मप्र के लोधा समाज के युवा संगठन के तत्वावधान मे क्षत्रिय लोधा समाज धर्मशाला धार मे श्रध्दा व आस्था के साथ माँ अवंतीबाई को श्रद्धांजली अर्पित की गई ।
               इस अवसर पर लोधा युवा संगठन धार ने वीरांगना रानी अवंतिबाई  के शहीद दिवस के उपलक्ष्य पर रक्तदान शिविर का आयोजन धार स्थित लोधा समाज धर्मशाला आमखेडा  में बडे ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया जिसमे लोधा समाज की लोधा समाज उज्जैन मंदिर व धर्मशाला द्रस्ट, लोधा समाज सामुहिक विवाह समिति, निर्माण समिति, शिक्षा समिति प्रकोष्ठ, लोधा युवा शक्ति संगठन व बड़ी संख्या में समाज जन भाग लिया
कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने माँ  अवंतीबाई के तस्वीर के सामने दीप प्रज्वलित कर उनके जीवन गाथा पर युवा वर्ग का ध्यानाकर्षित  किया ओर कहा कि हमे देश के प्रति  देशभक्ति की लो को ओर बडाने की जरुरत है ,उनके उदेश्यो पर चलने का संकल्प लिया।
       युवा संगठन के तत्वावधान मे रक्तदान शिविर के आयोजन की सोच की बहुत सराहना की  और ऐसे कार्यक्रमो ऐतिहासिक आयोजन बताया.लोधा युवा संगठन धार द्वारा आयोजित इस रक्तदान  मे कई गांव के युवाओं ने रक्तदान किया शिविर में फ108 रक्तदाताओं ने रक्तदान किया साथ ही दूसरी समाजों को भी इस प्रकार के आयोजन करने की सलाह दी!   
  इस मौके पर विशेष अतिथि के रुप में लोधा  सुनील साध जी(अध्यक्ष-जिला समिति इंदौर),
 सुभाष पटेल (लोधा समाज अध्यक्ष धार) व ब्लड बैंक अधिकारी धार अनिल जी वर्मा भी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

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