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Monday 7 January 2019

हिन्दू आतंकवाद शब्द गढने वालों को सत्ता की चांबी सौपना शर्मनाक - रवि शेखर नारायणसिंह

हिन्दू आतंकवाद शब्द गढने वालों को सत्ता की चांबी सौपना शर्मनाक - रवि शेखर नारायणसिंह

राजाभोज स्मृति व्याख्यानमाला के दूसरे दिन राष्ट्रवाद और जनसंचार माध्यम विषय पर हुआ व्याख्यान
संजय शर्मा संपादक 
हैलो -धार पत्रिका  
            धार-  देश  को आज आंतरिक व बाहरी दोनों तरह की चुनौतियों से जुझना पड रहा है। जिहादी, माओवादी और चर्च नए संदर्भ में देश के राजनीतिक पटल पर घुस गए है। आज देश  छद्म युद्ध के दौर से गुजर रहा है। बाहरी ताकतें हमारे अपने ही लोगों की वजह से देश  की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बनी हुई है। छत्तीसगढ में माओवादी गतिविधियां समाप्त नहीं हुई है बल्कि माओवाद का केंद्र बिंदु के रूप में उभरना राष्ट्र के लिए ज्यादा घातक है। केरल  और जेएनयू कैम्पस में राष्ट्र विरोधी गतिविधियां चिंताजनक है। देश  में एक नई तरह की खूनी विचारधारा का जन्म होना राष्ट्रवादी विचारधारा पर सीधा सा  प्रहार है। आसन्न छद्म युद्ध जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमें भी तैयार रहना होगा। शबरीमाला विवाद भी बाहरी ताकतों के षडयंत्र का नतीजा है। शबरीमाला में हजारों वर्षो की पुरातन परंपरा को खंडित करने का प्रयास किया गया। 
           जिसमें उन लोगों की भगवान अयप्पा में  न श्रद्धा थी न विश्वास  था और न वे उस धर्म को मानने वाले थे। यह एक तरह से माओवादी, चर्च और जिहादी षडयंत्र है जो एक तरह से संपूर्ण समाज के लिए चिंता और चिंतन का विषय है। इसें सरकार और न्यायपालिका को गंभीरता से लेना चाहिए अन्यथा यह आक्रोश  कभी भी विस्फोट का रूप ले सकता है। हाल ही में कुछ राज्यों के चुनाव परिणामों में 26/11 की घटना को लेकर हिन्दू आतंकवाद शब्द को गढने वालों को सत्ता की चांबी सौपना शर्मनाक है।
         उक्त उद्गार स्व. दत्ताजी उननगाॅवकर स्मृति सेवा न्यास धार द्वारा पंचम राजाभोज स्मृति दो दिवसीय व्याख्यानमाला के दूसरे और अंतिम दिन राष्ट्रवाद और जनसंचार माध्यम विषय पर राॅ के पूर्व अधिकारी एवं सुरक्षा मामलों के जानकार  रवि शेखर नारायणसिंह ने मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान देते हुए कहे।   सिंह ने कहा कि माओवाद की पहुंच पहले से ज्यादा व्यापक और गहरी है। भारत बीते 20-25 वर्षो से छद््म वार झेल रहा है। देश  विरोधी गतिविधियां अब राजनीति का हिस्सा बनती जा रही है। जाति के नाम पर समाज को बांटने और विकृतियां पैदा करने का घिनौना प्रयास इन दिनोें देश  के हर हिस्सों में चल रहा है। श्री सिंह ने इतिहास और धार्मिक ग्रंथों का जिक्र करते हुए कहा कि अधिकांष ऋषि दलित और निम्न जाति के रहे है फिर जाति के नाम पर बंटवारा क्यों ? श्री सिंह ने राष्ट्र की ताकत एकता को बताते हुए कहा कि देष की जडों में भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषायी एकता है। यही एकता भारत को समर्थ बनाती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि संगीत, साडी और संस्कृत भारत को जोडने का काम करती है। 
            दीप प्रज्जवलन कर मुख्य वक्ता रवि शेखर नारायणसिंह और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री षंषाक शुक्ला, प्रबंधक शिवालिक बैंक धार ने दूसरे दिन की व्याख्यानमाला का शुभारंभ किया। मंच पर राजाभोज स्मृति व्याख्यानमाला समिति के अध्यक्ष डाॅ दिनेश कर्मा भी मंचासीन थे। सरस्वती वंदना दीपक खलतकर और उनके साथियों ने प्रस्तुत की। 
       अतिथि परिचय समिति के हरिहरदत्त शुक्ल ने दिया। अतिथियों का स्वागत समिति के विष्णु शास्त्री, निधि शास्त्री और भेरूसिंह बारोड ने किया। कार्यक्रम की भूमिका समिति के अध्यक्ष डाॅ दिनेश कर्मा ने प्रस्तुत की। अतिथियों को स्मृति चिन्ह समिति के ओमप्रकाश  त्रिवेदी, डाॅ देवेन्द्र मंडलोई, संदीप पाटीदार ने भेंट किया। आभार सिद्धार्थ जैन ने प्रकट किया। वंदेमातरम् गीत की प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह जानकारी राजाभोज स्मृति व्याख्यानमाला के सचिव सिद्धार्थ जैन ने दी। 

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