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Monday 2 April 2018

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ भारत बंद में देश में 7 मरे, अरबों की सम्पति का नुकसान

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ भारत बंद में देश में 7 मरे, अरबों की सम्पति का नुकसान  

मध्य प्रदेश : दलित आंदोलन के दौरान व्यापक हिंसा, 5 मरे  

SC/ST एक्ट में बदलाव पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका
     भोपाल - एससी/एसटी कानून को कमजोर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ सोमवार को आहूत भारत बंद के दौरान मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल जिलों में कई स्थानों पर भड़की हिंसा में कम से कम 5 लोगों की मौत हो गई है, और कई अन्य घायल हो गए हैं। हिंसा को देखते हुए राज्य के कई हिस्सों में कर्फ्यू लगा दिया गया है, और इंटरनेट सेवा निलंबित कर दी गई है। राज्य में सर्वाधिक हिंसा ग्वालियर, मुरैना और भिंड में देखने को मिली है।
 ग्वालियर के कलेक्टर राहुल जैन ने जिले में तीन लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा, ‘दो लोगों की मौत ग्वालियर शहर में और एक व्यक्ति की मौत डबरा कस्बे में आपसी संघर्ष के दौरान हुई है।’ जैन से साफ किया कि तीनों मौतें आपसी संघर्ष में हुई है, जिसमें पुलिस की कोई भूमिका नहीं है।
उन्होंने कहा कि जिले में कुल 62 लोग घायल भी हुए हैं, जिनमें सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है। चंबल क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) संतोष सिंह ने मुरैना और भिंड में हिंसक सघर्षो में दो लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है।
सिंह ने बताया, ‘मुरैना और भिंड में एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है। लेकिन मौत के कारणों का पता अभी नहीं चल पाया है। मुरैना शहर और भिंड के पांच कस्बों में कर्फ्यू लागू है। हालात पर बराबर नजर रखी जा रही है।’ पुलिस के अनुसार, ग्वालियर में विरोध प्रदर्शन के हिंसक रूप अख्तियार करने के बाद तीन थाना क्षेत्रों -थाटीपुर, गोला का मंदिर, मुरार- में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इंटरनेट सेवा निलंबित कर दी गई है। इन इलाकों में बड़ी संख्या में वाहनों में तोड़फोड़ और आगजनी की खबर है।पुरे प्रदेश में अब तक 60 लोगो की गिरफ़्तारी की गई है। राजधानी भोपाल की खबर 
    राज्य की राजधानी भोपाल में भी बोर्ड ऑफिस चौराहे पर बड़ी संख्या में आंदोलनकारी जमा हो गए। आंदोलनकारियों को हटाने में पुलिस नाकाम दिखाई दे रही है। सागर में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया है। आंदोलनकारियों ने कई जगह रेलगाड़ियों को भी रोक दिया है।
इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है, और राज्य के हालात की समीक्षा के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की है। उल्लेखनीय है कि एससी/एसटी (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति) अधिनियम का दुरुपयोग रोकने के लिए हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित किया था। न्यायालय के इस फैसले के विरोध में विभिन्न संगठनों ने सोमवार को दिनभर का भारत बंद आहूत किया है, जिसका मध्य प्रदेश में व्यापक असर हुआ है।
        क्या आया था 20 मार्च फैसला सुप्रीम कोर्ट का 
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने एक फैसले में कहा था कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत पब्लिक सर्वेंट की गिरफ्तारी, एपॉयंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती है. आम लोगों को भी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंजूरी के बाद ही इस मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है. इस कानून के तहत इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को शिकायत के आधार पर तुरंत गिरफ्तार कर लिये जाने का प्रावधान था. दलित समुदाय इस फैसले से आहत है. उसके मुताबिक ये एक तरह से कानून को लचीला बनाने की कोशिश थी और उसे डर है कि दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ेगी और उन्हें जैसे मर्जी धमकाया जाएगा. मानवाधिकार संगठनों और कई गैर बीजेपी दलों ने भी इस फैसले की आलोचना की थी और सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए थे. खुद बीजेपी के भीतर से दलित नेताओ ने फैसले के खिलाफ एक सुर में आपत्ति जताई थी. 
आदेश से कमजोर हुआ कानून, SC/ST एक्ट में बदलाव पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका

         अनुसूचित जाति और जनजाति कानून की कुछ धाराओं में फेरबदल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के कई शहरों में शुरू हुए दलित प्रदर्शनों के बीच केंद्र सरकार ने सोमवार (2 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। अपनी याचिका में केंद्र ने कहा है कि कोर्ट यह नहीं कह सकता हैं कि क़ानून का स्वरूप कैसा हों क्योंकि क़ानून बनाने का अधिकार संसद के पास हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कानून कमजोर हो गया है।
     सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश के कई हिस्सों में दलित सड़कों पर उतर आए। उनकी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को वापस लिया जाए। उधर, केंद्र ने भी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी। अपनी याचिका में केंद्र ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लोगों में कानून का डर कम होगा, जिससे इसके उल्लंघन के और मामले सामने आ सकते हैं। केंद्र ने कहा कि सभी आपराधिक मामलों में सामान्य तौर पर एफआईआर दर्ज की जाती है ऐसे में डीएसपी स्तर के अधिकारी की जांच के बाद एफआईआर दर्ज करने का कोई प्रावधान नही है। केंद्र का कहना है कि ये आदेश न्याय अनुकूल नही है।
    सरकार ने कहा है कि जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया हैं उसमें सरकार पक्षकार नहीं थी। सरकार ने कहा है कि कोर्ट यह नहीं कह सकता है कि क़ानून का स्वरूप कैसा हो क्योंकि क़ानून बनाने का अधिकार संसद के पास हैं। साथ ही किसी भी क़ानून को सख़्त बनाने का अधिकार भी संसद के पास ही हैं।
      सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट केवल तीन आधारों पर कानून को रद्द कर सकता है। पहला अगर मौलिक अधिकार का हनन हों दूसरा गलत क़ानून बनाया गया हो और तीसरा अगर कोई क़ानून बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता हो।सरकार की यह भी दलील हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला SC-ST समुदाय के संविधान के तहत दिए गए अनुच्छेद 21 के तहत जीने के मौलिक अधिकार से वंचित करेगा। सरकार ने कहा कि SC-ST के खिलाफ अपराध लगातार जारी है और तथ्य बताते हैं कि कानून के लागू करने में कमजोरी है ना कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। केंद्र ने याचिका पर जल्द सुनवाई की मांगा की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया। उधर इस मामले में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए फैसल को रद्द करने की मांग की है।
   

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