भैया जी जोशी को RSS सरकार्यवाह के पद पर लगातार चौथी बार चुना गया
नागपुर - पिछले कुछ महीनों के इस बात की अटकलें लगाई जा रही थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की टॉप लीडरशिप में बदलाव हो सकता है. संघ में नंबर टू का रुतबा रखने वाले सरकार्यवाह के पद पर सुरेश ‘भैयाजी’ जोशी की जगह उन्हीं के डिप्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक माने जाने वाले सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की नियुक्ति की चर्चाएं थी. नागपुर में चल रही संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ ने इन तमाम अटकलों को विराम देते हुए भैया जी जोशी को ही सरकार्यवाह के पद पर चुन लिया है.
भैयाजी जोशी को लगातार चौथी बार इस पद पर चुने जाने के क्या राजनीतिक मायने हैं? यह बीजेपी और पीएम मोदी के लिए संघ की ओर से कितना बड़ा संकेत है? यह जानने से पहले संघ के शीर्ष नेतृत्व के ढांचे, सरकार्यवाह के महत्व और उसकी शक्तियों को जानना जरूरी है.
कैसे होता है चुनाव
देश भर में अपनी 60,000 से ज्यादा शाखाओं के जरिए देश के करीब 95 फीसदी भूगोल में मौजूदगी रखने वाले संघ के भीतर सबसे बड़ा पद सर संघचालक का होता जो फिलहाल मोहन भागवत के पास है. संघ में सरसंघचालक की भूमिका एक गाइडिंग फोर्स और प्रेरणा के केंद्र की ही होती है. दुनिया का सबसे बड़ा गैरसरकारी संगठन होने का दावा करने वाले संघ को चलाने और उसकी नीतियों को तय करने से लेकर अमलीजामा पहनाने की रणनीति तय करने में नंबर टू की पोजिशन वाले सरकार्यवाह का पद बेहद अहम होता है. सरकार्यवाह की मदद के लिए चार सह सरकार्यवाह होते हैं.
1950 के दशक में बने संघ के संविधान के मुताबिक सरसंघचालक का चुनाव नहीं होता. इस पद पर मौजूदा सरसंघचालक किसी स्वयंसेवक को मनोनीत करते है जो जीवनपर्यंत इस पद पर रह सकते हैं. संघ में नंबर टू की पोजिशन यानी सरकार्यवाह का चुनाव हर तीन साल बाद अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में किया जाता है. भैयाजी जोशी पिछली तीन बार इस पद पर चुने गए थे.
क्या है संघ परिवार
संघ खुद के एक सांस्कृतिक संगठन होने की बात कहता है लेकिन इसके कई और संगठन हैं. केन्द्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी भी उनमें से एक है. विश्व हिंदू परिषद, स्वेदेशी जागरण मंच अखिल भारतीय मजदूर संघ और बजरंग दल जैसे संगठन संघ परिवार का हिस्सा हैं.
संघ परिवार के इन सदस्यों की रिपोर्टिंग सीधे सरकार्यवाह को ही होती है यानी सरकार्यवाह का आदेश ही संघ परिवार के लिए अंतिम आदेश होता है.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली ऐतिहासिक जीत में संघ से संवयंसेवकों के साथ-साथ संघ परिवार के इन बाकी संगठनों की भी बड़ी भूमिका रही थी.
बीजेपी के भीतर तमाम महामंत्रियों के बीच संगठन महामंत्री की भूमिका सबसे अहम होती है. बीजेपी अध्यक्ष को अगर इस्तीफा सौंपना हो तो वह संगठन महामंत्री को ही सौंपा जाता है. बीजपी में इस पद पर संघ की ओर से भेजे गए स्वयंसेवक की ही नियुक्ति होती है. मौजूदा वक्त में रामलाल बीजेपी के संगठन महामंत्री हैं.बीजेपी के साथ संघ के समन्वय का काम सह सरकार्यवाह देखते हैं. फिलहाल यह दायित्व कृष्ण गोपाल के पास है जो दत्तात्रेय होसबोले के ही समकक्ष हैं.
मोदी के पीएम बनने के बाद अमित शाह की बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी हुई और बीजेपी का विजय रथ कई राज्यों में भी कामयाबी के साथ दौड़ा. सर्वविदित है कि बीजेपी में आज मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती देने का साहस किसी में नहीं है लेकिन संघ परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और अखिल भारतीय मजदूर संघ जैसे संगठन कई बार मोदी सरकार की खुलेआम आलोचना कर चुके हैं. ये संगठन सीधे संघ के नियंत्रण में हैं.
माना जा रहा था कि मोदी के करीबी कहे जाने वाले सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले को संघ में नंबर टू की पोजिशन पर बिठा कर पीएम मोदी के समर्थक, संघ में भी उन्हें पावरफुल बना देना चाहते हैं
.कौन हैं दत्तात्रेय होसबोले
कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले दत्तात्रेय होसबोले ने संघ के भीतर अपने काम की वजह से एक पहचान बनाई हैं. संघ के भीतर उनकी और बीजेपी के भीतर मोदी की कामयाबी का वक्त समानांतर रहा है. होसबोले पिछले कुछ सालों से बीजेपी की चुनावी रणनीति में अहम भूमिका निभा रहे हैं. 70 साल से ऊपर के हो चुके संघ के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी के खराब स्वास्थ्य चलते पिछले दो साल से उनकी जिम्मेदारियों का निर्वहन होसबोले ही कर रहे थे.पिछले साल अपने घुटनों का ट्रांसप्लांट कराके भैयाजी जोशी ने यह दायित्व फिर से संभाला था. ऐसे में कयास थे कि खराब स्वास्थ्य के चलते भैयाजी जोशी यह पद त्याग सकते हैं और 63 साल के होसबोले की इस पर नियुक्ति हो सकती है.मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साल भर बाद यानी 2015 में भी इस तरह की चर्चाएं थीं कि होसबोले को संघ में नंबर टू की कमान मिल जाएगी लेकिन उस बार भी भैयाजी जोशी को तीसरी बार तीन साल का एक्सटेंशन मिल गया था.
केन्द्र सरकार और देश के 21 राज्यों की सत्ता में मोजूद बीजेपी की अदृश्य कमान संघ के ही हाथों में रहती है. ऐसे वक्त में जब देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं तब संघ का यथा स्थिति को चुनना यानी होसबोले को भैयाजी जोशी की जगह प्रमोट ना करने का फैसला साफ-साफ संकेत देता था है कि बीजेपी भले ही राजनीति तौर पर अपने स्वर्णिम दौर में हो लेकिन संघ उसके साथ ‘बड़े भाई’ की अपनी भूमिका में कोई बदलाव नहीं चाहता है.
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