25 साल बाद भाजपा का केसरिया उदय, वाम दलों का गढ़ ध्वस्त
अगरतला-- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू त्रिपुरा पर ऐसा चला कि वाम दलों का 25 वर्ष पुराना गढ़ ध्वस्त हो गया और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया।
राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा की 59 सीटों के चुनाव परिणामों से साफ है कि पिछले विधानसभा चुनाव में एक सीट भी नहीं जीत सकी भाजपा अकेले सरकार बनाने की स्थिति में आ गयी है। उसे अपनी सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट आफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ मिलकर विधानसभा में दो तिहाई बहुमत मिलना तय लग रहा है। विधानसभा में पहली बार खाता खोलने वाली भाजपा 43 सीटें जीत चुकी है जिससे उसे अकेले ही पूर्ण बहुमत मिल गया है आईपीएफटी ने 13 सीटें जीती हैं। पिछले लगातार 25 वर्षाें से सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को मात्र 16 सीटें मिली। पिछली बार 10 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को इस बार एक भी सीट मिली।
पिछले चुनावों में मात्र डेढ़ प्रतिशत वोट हासिल करने वाली भाजपा ने इस बार 42 प्रतिशत से अधिक मत हासिल किया है। मत प्रतिशत के मामले में माकपा उससे कुछ आगे जरूर है लेकिन भाजपा और उसके सहयोगी दल को मिले मतों का प्रतिशत 50 से अधिक है। पूर्वोतर क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू ऐसा चला कि त्रिपुरा में पिछले 25 साल से सत्तारूढ़ वाम मोर्चा सरकार पूरी तरह उखड़ गई और वामपंथी दल अपने अंतिम गढ़ को बचा पाने में असफल रहे।
वाम मोर्चा राज्य में 1993 से लगातार सत्ता में थी। इससे पहले 1978 से 1988 तक भी उसकी सरकार रही थी। मुख्यमंत्री माणिक सरकार की ईमानदार छवि को देखते हुए चुनाव विशेषज्ञों को यह उम्मीद नहीं थी कि वाम मोर्चे की इतनी बड़ी शिकस्त होगी। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी रणनीति के आगे सारे अंकगणित गड़बड़ा गये। पिछले विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली भाजपा ने अकेले बहुमत हासिल कर लिया है और अपनी सहयोगी के साथ वह दो तिहाई बहुमत के करीब पहुंच गयी। 1988 में दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करिश्मे ने वामदलों को सत्ता से बाहर किया था और कांग्रेस सत्ता में आयी थी। इस बार नरेंद्र मोदी के जादू ने न केवल वाम किले को ढहा दिया बल्कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया।नगालैंड में भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू सरकार तो हर हाल में बनेगी
नई दिल्ली। नगालैंड में तेजी से बदलते घटनाक्रम में ऐसा लगता है कि भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू है। उसके और एनडीपीपी के गठबंधन को ज्यादा सीटें तो मिली ही हैं, दूसरी तरफ, बहुमत के करीब दिख रहा एक महीने पहले तक का साझेदार एनपीएफ भी उसके साथ फिर से रिश्ता जोड़ने को तैयार दिख रहा है।
एनपीएफ के नेता टीआर जेलियांग ने एक न्यूज चैनल से यहां तक कहा कि हिमंता बिस्वा सरमा और किरण रिजिजू जैसे बीजेपी के कई नेता उनके संपर्क में हैं और वे सरकार में भाजपा का स्वागत करेंगे।
अब यहां सवाल नैतिकता का है कि क्या एक महीने पहले ही भाजपा ने चुनाव पूर्व जिसके साथ गठबंधन बनाया था, उस एनडीपीपी का हाथ झटक कर फिर अपने पुराने पार्टनर के पास जाएगी? अभी अंतिम परिणाम नहीं आया है और रूझानों में काफी उतार-चढ़ाव रहा। इस बीच सरकार बनाने को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। टीआर जेलियांग का बयान राज्य में चल रहे राजनीतिक दांव-प्रतिदांव का संकेत देता है।
भाजपा ने जिस पार्टी के 15 साल के रिश्ते को फरवरी महीने में ही तोड़ दिया था, उसे ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं। फायदे की आस में भाजपा ने गत फरवरी महीने में ही नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) से गठबंधन किया।
नगालैंड में भाजपा इस बार नवगठित नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनावी अखाड़े में उतरी थी। दोनों ने क्रमशः 20 और 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। राज्य की 60 में से 59 सीटों पर 27 फरवरी को वोटिंग हुई थी। एक सीट पर एनडीपीपी के नेता नेफियू रियो पहले ही निर्विरोध जीत चुके हैं।मेघालय में त्रिशंकु विधानसभाशिलांग। मेघालय के मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट जनादेश न देकर सरकार बनवाने की कुंजी छोटे दलों के हाथों में सौप दी है ।
साठ सदस्यीय विधानसभा की 59 सीटों के लिए चुनाव हुए थे और पिछले दस साल से राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस 21 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप मे उभरी है लेकिन वह स्पष्ट बहुमत के जादुयी आकड़े से नौ सीट पीछे रह गयी है।
त्रिशंकु विधानसभा की इस स्थिति में उसे छोटे दलों को साथ लाना पड़ेगा जिसमें उसे सतर्कता भी बरतनी पड़ेगी। पिछले साल गोवा और मणिपुर में भी कांग्रेस सबसे बड़े दल के रुप में उभरी थी पर भारतीय जनता पार्टी ने तेजी दिखाते हुए छोटे दलों को अपने साथ ले लिया और सरकार बना ली और कांग्रेस देखती रह गयी। कांग्रेस यदि छोटे दलों को यहां साथ नहीं ले पायी तो उसके हाथ से एक और राज्य खिसक जायेगा। नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) 19 सीटों के साथ दूसरे सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। राज्य में चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा को केवल दो सीटें मिली है। इस चुनाव में भाजपा और एनपीपी एक दूसरे के खिलाफ थे जबकि केन्द्र और मणिपुर में दोनों गठबंधन में हैं। यह देखते हुए मेघालय में भी दोनों अब साथ आ सकती हैं। युनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी)की झोली में छह सीटें गयीं है तथा चार सीटें पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट को मिली हैं। हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी) ने दो सीटें जीती है जबकि एक एक सीट पर खुन हाईन्यूट्रेप नेशनल अवेकनिंग मूवमेंट (केएचएनएएम) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सफल रहे हैं। तीन सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों की झोली में गयी हैं। मुख्यमंत्री मुकुल संगमा दोनों विधानसभा सीटों -अम्बति तथा सांग्सोक से विजयी रहे हैं।
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