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Thursday 28 March 2019

सुमित्रा महाजन एक ही सीट से 8 बार जीती 5 बार 1 लाख से ज्यादा का अंतर 30 वर्षो में पहली बार टिकट का लम्बा इंतजार

सुमित्रा महाजन एक ही सीट से 8 बार जीती  5 बार 1 लाख से ज्यादा का अंतर 30 वर्षो में पहली बार  टिकट का लम्बा इंतजार 

इंदौर का टिकट इन्हें भी मिल सकता है  भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय  महापौर मालिनी गौड़,शंकर लालवानी ,गोपी कृष्ण नेमा 
महाजन से जुड़े नेताओं का दावा- एक-दाे दिन में तस्वीर साफ हो जाएगी 
संजय शर्मा 
हैलो -धार पत्रिका 
             इंदौर - . इंदौर में 1989 से लगातार आठ बार से चुनाव जीतती आ रहीं लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को पहली बार टिकट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। भाजपा उम्मीदवारों की 11 सूचियां जारी हो चुकी हैं। संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है कि इतनी सूची आने के बाद भी महाजन किसी में स्थान नहीं पा सकीं। वह भी तब, जब भाजपा के शीर्ष स्तर के सभी बड़े नेताओं की सीट और उम्मीदवारी तय हो चुकी है। इससे कई तरह की अटकलें चल पड़ी हैं।
                हालांकि महाजन से जुड़े नेताओं का दावा है कि एक-दाे दिन में तस्वीर साफ हो जाएगी और महाजन को टिकट मिल जाएगा, लेकिन यह चर्चा भी चल रही है कि पार्टी किसी नए नाम पर विचार कर सकती है। महाजन इन आठ चुनावों में 2009 के अपवाद को छोड़ कभी जीत के लिए भी इतना परेशान नहीं हुई, जितना इस बार टिकट के लिए हो रही हैं। 
अध्यक्ष के बयान के मायने, ताई का टिकट खतरे में? :
            भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने कहा था कि इंदौर का टिकट महाजन की सहमति बगैर घोषित नहीं होगा। इसके मायने यही निकाले जा रहे हैं कि महाजन के टिकट को लेकर भी अगर-मगर हैं।  
           महाजन नहीं तो कौन? : ऐसी स्थिति बने कि महाजन को टिकट न दिया जाए तो उनकी जगह कौन चुनाव लड़ेगा, इसको लेकर भी कयास ही चल रहे हैं। उनके अलावा दूसरा नाम भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का है। महापौर मालिनी गौड़, तीन बार अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव जीतने वाली विधायक उषा ठाकुर, पूर्व विधायक गोपी कृष्ण नेमा ,विधायक रमेश मेंदोला और महाजन की पसंद आईडीए के पूर्व चेयरमैन शंकर लालवानी के नाम चर्चा में बताए जा रहे हैं। 
महाजन ने तीन नंबर में ली बैठक :
          महाजन ने गुरुवार को तीन नंबर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की बैठक की। एक बैठक जावरा कम्पाउंड स्थित पार्टी कार्यालय में ली तो दूसरी छावनी की मोदी की नसिया में। मोदी की नसिया में हुई बैठक मेंे मेंदोला ने कहा कि महाजन को रिकॉर्ड बहुमत से जिताकर लोकसभा भेजना है। 
जीत के लिए जितना संघर्ष नहीं किया, उतना इस बार टिकट के लिए-

           1989 : महाजन पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ीं, वह भी कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री प्रकाश चंद सेठी के सामने। महाजन ने इंदौर की बहू होने के नाते अपील की और शहर के विकास की चाबी मांगी। आखिर में करीब एक लाख वोटों से जीत गईं।
            1991 :  मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने इस बार चेहरा बदलते हुए पूर्व मंत्री ललित जैन को मैदान में उतारा। राजीव गांधी के निधन से उपजी लहर और कांग्रेस के पक्ष में माहौल होने के बावजूद महाजन ने जैन को हरा दिया। हालांकि इस दौरान एक विवादित नारे ने भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया।
         1996 : लगातार तीसरी बार भाजपा ने बिना विवाद के महाजन को टिकट दिया। कांग्रेस से तत्कालीन महापौर मधुकर वर्मा उम्मीदवार थे। राम मंदिर की लहर और अबकी बारी अटल बिहारी के नारे से बने माहौल के साथ कांग्रेस की फूट भी सामने आई। तिवारी कांग्रेस से अनिल शास्त्री चुनाव लड़े, जिससे  कांग्रेस के वोट दो हिस्सों में बंट गए। महाजन एक लाख से ज्यादा वोटों से जीतीं। 
             1998 : महाजन को भाजपा ने चौथी बार फिर मैदान में उतारा। तब तक भाजपा में उनका कद इतना बढ़ चुका था कि दूसरा दावेदार दौड़ में ही नहीं था। नतीजा- सामाजिक समीकरणों के लिहाज से कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे पंकज संघवी को भी महाजन ने हरा दिया। हालांकि पहली बार उनकी जीत का अंतर 50 हजार से नीचे आया। जीत के बाद वे केंद्र में राज्यमंत्री बनीं। 
             1999 : 13 माह तक चली अटल सरकार एक वोट से गिर गई और फिर से चुनाव हुए। तब कांग्रेस ने दिग्गज नेता महेश जोशी को टिकट दिया। चुनाव के दौरान कई विवाद उभरे। फिर भी महाजन ने चौंकाया और जोशी को सवा लाख के बड़े अंतर से पराजित कर एक बार फिर केंद्रीय राज्यमंत्री बनीं। 
      2004 : इस चुनाव में भाजपा ने शाइनिंग इंडिया का नारा दिया और इंदौर से महाजन को ही मैदान में उतारा। कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व मंत्री रामेश्वर पटेल थे। इस चुनाव में जिस भाजपा की लहर थी, वह 138 सीटों पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस को 206 सीटें मिलीं। जब देश में कांग्रेस मजबूत हुई, तब भी महाजन को कोई चुनौती नहीं मिली और लगभग दो लाख वोटों से चुनाव जीतीं।
          2009 : पहली बार महाजन को टिकट दिए जाने के विरोध में आवाजें उठीं और गुटबाजी भी चरम पर थी। पहली बार ही ऐसा हुआ कि ताई और भाई (कैलाश विजयवर्गीय) की जंग खुलकर सामने आ गई। फिर भी भाजपा ने महाजन पर ही भरोसा जताया। कांग्रेस से सत्यनारायण पटेल मैदान में उतरे। दो नंबर गुट के विरोध, भितरघात की वजह से महाजन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। जैसे-तैसे वे 11 हजार वोट से जीत पाईं। 
           2014 : इस बार विजयवर्गीय का नाम चर्चा में आया कि वे चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि भाजपा ने महाजन को ही टिकट दिया। उन्होंने इंदौर सीट पर जीत के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। उन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को करीब साढ़े चार लाख वोटों से हराया। इसके बाद वे लोकसभा स्पीकर चुनी गईं।

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