सार्वजनिक गणेशोउत्सव समिति आनंद चौपाटी की 56 वे वर्ष में कोल्हापुर महालक्ष्मी की भव्य झांकी
संजय शर्मा
हैलो धार
(१)कोल्हापुर महालक्ष्मी की(झांकी) कहानी
इस मंदिर को लेकर ऐतिहासिक मान्यता यह है कि इस मंदिर में देवी महालक्ष्मी को 'अम्बा बाई' के नाम से पूजा जाता है। कोल्हापुर देवी महालक्ष्मी की कहानी कुछ इस तरह है कि एक बार ऋषि भृगु के मन में शंका उत्पन हुई कि त्रिमूर्ती के बीच में कौन सबसे श्रेष्ठ है। इसे जाने के लिए पहले वे ब्रह्मा के पास गए और बुरी तरह उनसे बात की। जिससे ब्रह्मा को क्रोध आ गया। इससे ऋषि भृगु को यह ज्ञात हुआ कि ब्रह्मा अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकते अतः उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा किसी भी मंदिर में नहीं होगी। इसके बाद वे शिव जी के पास गए लेकिन नंदी ने उन्हें प्रवेश द्वार पर ही यह कह कर रोक दिया कि शिव और देवी पार्वती दोनों एकान्त में हैं। इस पर ऋषि भृगु क्रोधित हुए और शिव जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा लिंग के रूप में होगी।
इसके बाद वे विष्णु जी के पास गए और देखा कि भगवान विष्णु अपने सर्प पर सो रहे थे और देवी महालक्ष्मी उनके पैरों की मालिश कर रहीं थी। यह देख ऋषि भृगु क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु छाती पर मारा। इससे भगवान विष्णु जाग गए और ऋषि भृगु से माफी मांगी और कहा कि कहीं उन्हें पैरो में चोट तो नहीं लग गयी। यह सुन कर ऋषि भृगु वहं से भगवान विष्णु की प्रशंसा करते हुए वापस चले गए। लेकिन ऋषि भृगु के इस व्यवहार को देख कर देवी महालक्ष्मी क्रोधित हो गयी और उन्हों ने भगवान् विष्णु से उन्हें दंडित करने को कहा। लेकिन भगवान विष्णु इसके लिए राज़ी नहीं हुए।
भगवान विष्णु के बात ना मानने पर देवी लक्ष्मी ने वैकुंठ त्याग दिया और कोल्हापुर शहर चली गयी। वहाँ उन्हों ने तपस्या की जिससे भगवान विष्णु ने भगवान वेंकटचलपति रूप में अवतार लिया। इसके बाद उन्होंने देवी पद्मावती के रूप में देवी लक्ष्मी को शांत किया और उनके साथ विवाह किया।🚩
मूर्ति
महालक्ष्मी की प्रतिमा काली और ऊंचाई करीब 3 फीट लंबी है। मंदिर के एक दीवार में श्री यंत्र पत्थर पर खोद कर चित्र बनाया गया है। देवी की मूर्ति के पीछे देवी की वाहन शेर का एक पत्थर से बनी प्रतिमा भी मौजूद है। देवी के मुकुट में भगवान विष्णु के शेषनाग नागिन का चित्र भी रचाया गया है। देवी महालक्ष्मी के चारों हाथों में अमूल्य प्रतीक वस्तुओं को पकड़ते दिखाई देते है। निचले दाहिने हाथ में निम्बू फल धारण किये (एक खट्टा फल), ऊपरी दाएँ हाथ में गधा के साथ (बड़े कौमोदकी जो अपने सिर जमीन को छुए), ऊपरी दाई हाथ में एक ढाल (खेटका) और निचले बाएँ हाथ में एक कटोरे लिए (पानपात्र) देखें जातें है। अन्य हिंदू पवित्र मंदिरों में देवीजी पूरब या उत्तर दिशा को देखते हुए मिलते हैं लेकिन यहाँ देवी महालक्ष्मीजी पश्चिम दिशा को निरीक्षण करते हुए मिलते है। वहाँ पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की मिलती है, जिसके माध्यम से सूरज की किरणें हर साल मार्च और सितंबर महीनों के 21 तारीख के आसपास तीन दिनों के लिए देवीजी की मुख मंडल को रोशनी करते हुए इनके पद कमलों में शरण प्राप्त करते हैं।
(२)देश और सेना को समर्पित राफेल विमान इंडियागेट लालकिले पर आधारित झांकी
(३)भगवान शिव के ध्यानयोग को शद्रश्य करती प्रतिमा
(४)अखाडा जिसमे हैरतंगेज कला का प्रदर्शन रहेगा
(५)श्रद्धाजलि रथ
यह जानकारी श्री हरीश रघुवंशी द्वारा
No comments:
Post a Comment